dhairya
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बहस ही तो थी बवाल क्यूं किया
था मैं भी तो इंसां
क्या बदला था ये
जो कुचल दिया, मसल दिया
था वो भी कैदी, मैं भी कैदी
थे दोनों ही इक रूह
क्या हमला था ये
जो कुचल दिया, मसल दिया
उसने ही बनाया था यूं
सरबजीत को, मुझे भी
क्या जुमला था ये
जो कुचल दिया, मसल दिया
अल्लाह की मर्जी रही होगी
कहते हैं जेहन में रहता है वो
क्या कत्ल था ये
जो कुचल दिया, मसल दिया
मेरी जुबान ही तो चली थी
क्या हक नहीं था मुझे
क्या सियासत की बू थी
जो कुचल दिया, मसल दिया ।
-सनाउल्लाह ।
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