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चुंबन

dhairya
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बदकिस्मती से बेचारा हो चुका है चुंबन। कामुकता के कीचड़ में चुंबन के होंठ कुछ ऐसे सने कि उनमें लिपिस्टिक की खुश्बू और कोमलता की कालीन खोजी जाने लगी। अफसोस कि यू-ट्यूब पर सर्च करने पर एक भी ऐसा चुंबन नहीं मिला, जो मां ने बेटे के माथे पर दिया हो, या एक भाई ने राखी बांधती अपनी बहन को !

हिन्दी में चुंबन, अंग्रेजी में किस। होंठों पे वफा की नमी और दिल में प्यार की हिलोरें ही चुंबन लेने और देने की इच्छा पैदा करती हैं। रील से रियल तक, फिल्मों से फेमिली तक चुंबन का तरीका, सलीका, सब बदल गया है। चूमने से दिल को ठंडक और अपनेपन का ऐहसास होता था, करीबी और दूरी के बीच का पुल था चुंबन। कुछ सालों से इस का आधुनिक आयात, पश्चिमी देशों से होने लगा। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था कि भारत में इसे सादगी और पवित्र प्रेम का हिस्सा माना जाता था। गांव के बुजुर्ग हमारे हाथ चूमते थे, रिश्तेदारों के स्वागत करने का अंदाज़ भी इसी से बयां होता था। बीते कुछ साल से ’चुंबन-विशेष अभिनेता’ पैदा होने लगे। किसिंग सीन की भयानक भरमार ने पाश्चात्य संस्कारों से रेस लगानी शुरु कर दी। कामुकता के कीचड़ में चुंबन के होंठ, ऐसे सने कि उनमें लिपिस्टिक की खुश्बू और कोमलता की कालीन खोजी जाने लगी। किसिंग के इस आयात का असर, संस्कारों और विचारों पर तो पड़ा ही है, साथ ही फूहड़ता और अश्लीलता की ऐसी इमारत खड़ी हो गई है, जिसने सालों पुराने आत्मीय चुंबनों को खुद में ही दफ़न कर लिया है। इसे इच्छाओं से अलग करना होगा, खासकर वे इच्छाएं जो सिर्फ शारीरिक संतुष्टि तक जाकर खुद-ब-खुद पूरी होने के खोखले दावे करतीं हैं।
दुनिया को वैश्विक गांव बनाने के दावे करने वाले इंटरनेट पर जब ’चुंबन’ शब्द के मायने खोजने की कोशिश की तो विकीपीडिया ने इसका इतिहास परोस दिया। लगभग 22 तरीके के चुंबन यहां बताए गए। होंठों से लेकर जीभ तक, चेहरे से लेकर तलबों तक और तमाम नुस्खों-नज़रियों को पिरोकर चुंबन की चिंताएं और सावधानियां भी लिखीं पड़ीं हैं। किसिंग-टिप्स की लंबी-चैढ़ी लिस्ट यहां सिर्फ इंटरनेट का मददगार होना साबित नहीं करती, यह भी ज़ाहिर करती है कि इंटरनेट यूज़र्स के दमदार रिस्पांस से ही चुंबन के इन नायाब नुस्खों को यहां सार्वजनिक किया गया है। तरीके और तस्वीरों ने इस शब्द के ढेरों मायने गढ़ दिए हैं, पर कामुकता की जकड़ से इसे छुड़ाने में इंटरनेट का पक्षी भी बुरी तरह हांफ गया है। काले बोल्ड अक्षरों में यह चेतावनी मेरी नज़रों से बच नहीं पाई कि ’’चुंबन के दौरान आपके मुंह से बदबू कतई नहीं आनी चाहिए, अन्यथा आप इसके ’सुख’ से बेदखल किए जा सकते हैं।’’
कई डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने कुछ नए कारनामे भी लिखे हैं, जो चुंबन को शिद्दत से अंजाम देने का भरोसा दे रहे हैं। ’’जोश के साथ इसे लेने से आप अपना वजन घटा सकते हैं। किसिंग से आप प्रतिमिनट कम से कम 6.4 कैलोरी खर्च करते हैं।’’ जैसे कई तथ्य ’चुंबन-लिस्ट’ के साथ चिपका दिए गए हैं। किसिंग का प्रमोशन और विज्ञापन कर रहे इंटरनेट को यहीं तसल्ली नहीं हुई है। कुछ तस्वीरों के ज़रिए उसने यूज़र्स खींचने के लिए नायक-नायिका की तस्वीरों का कटीला-कातिलाना जाल भी बिछा रखा है।
किस के किस्से समेंटने को अब धीरे-धीरे यू-ट्यूब की ओर बढ़ रहा हूं। चुंबन की फूटी किस्मत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मैं बंद कमरे में इस पर सर्च कर रहा हूं। परिवार से छिपकर, दरवाजा बंद कर, चुंबन का चरित्र, दहलीज़ और उसका भविष्य खोजने की कोशिश में जुटा हूं। इस विषय पर सर्च करते पकड़े जाने पर अपनी मासूम छवि बिगड़ने का डर है, साथ ही परिवार के उन तानों का अंदाज़ा भी, जो ’चुंबन-खोज’ करते पकड़े जाने पर या तो मुझे अकेले में बैठाकर या ज़ोर-ज़ोर से डांटकर दिए जा सकते हैं। अफसोस इस बात का है कि यू-ट्यूब पर सर्च करने पर एक भी ऐसा चुंबन नहीं मिला, जो मां ने बेटे के माथे पर दिया हो, या एक भाई ने राखी बांधती अपनी बहन को !
1933 में आई फिल्म कर्मा में असल जि़ंदगी के दंपत्ति हिमांशु राय और देविका रानी का झिझकते हुए 4 मिनट का किसिंग सीन खूब चर्चा में रहा था। उस वक्त यह खबर महीनों मीडिया के लिए बड़ी खबर बनी रही। हालांकि सीन पर सेंसर बोर्ड की कैंची चली और पर बीते दिनों इस दृश्य को एक फिल्म समारोह में दिखाया गया। फिल्मों में फिल्माए गए चुंबनों में तब और अब का बेहद फर्क आ गया है। सूरत से सीरत तक, मतलब से मायनों तक चुंबन की दास्तां अब पर्दे के पीछे छिप रही है। लुका-छिपी के बीच अब चुंबन एक ऐसा हौवा बन चुका है, जो सार्वजनिक तो क्या, सर्वमान्य भी नहीं रहा। बॉलीवुड में चुंबन स्पेशल अभिनेता कहे जाने वाले इमरान हाशमी हों या नए तरीकों से किसिंग को अंजाम दे रहे रणदीप हुड्ढा, नई पीढ़ी के नायकों ने यूथ-फैशन और आधुनिकkiss-lips3ता की पीठ पर चढ़कर चुंबन को अश्लीलता और कामुकता का चैकीदार बना दिया है।
नए नायकों में चुंबनस्टार बनकर उभरे वरुण धवन, शाहरुख खान, रनवीर कपूर, अर्जुन कपूर, व ढेरों ऐसे नायक हैं, जो अपनी हालिया फिल्मों में लंबे चुंबन दृश्यों की बदौलत ज़बर्दस्त चर्चा में रहे। क्या आज के दौर में ऐसा चुंबन ही सर्वमान्य है जो सिर्फ नायक-नायिका की मुहब्बत बयां करे ? प्यार और इश्क को आपस में उलझते देख चुंबन भी क्या एक वीरान बीहड़ में दौड़ पड़ा है ?
अब फिल्मों में बेटा मां का माथा चूमने की बजाय हाइ-हेलो कर चला जाता है। क्या भविष्य में चुंबन सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका की जागीर बनकर रह जाएगा ? बाकी रिश्तों में चुंबन क्या ठीक उसी तरह फलाॅप हो जाएगा, जैसे केबल युग आने के बाद एंटिना सिस्टम ..? चुंबन के मायने खतरे में हैं। किसिंग के किस्से यदि ज्यादा दिनों तक अश्लील और फूहड़ प्रेम की वैसाखी बने रहे तो वह दौर दूर नहीं, जब चुंबन सिर्फ वर्गविशेष साहित्य व सिनेमा की पहचान बन जाएगा। तब न हाथ चूमते बुजुर्गों के होंठ होंगे, ना मां का माथा चूमता बेटा। किस से लेकर चुंबन और पप्पी से लेकर पुच्ची को एक बार फिर संस्कारों और विचारों में तवज्जो देने की ज़रूरत है। कहीं ऐसा न हो कि चुंबन चुनिंदा दिनों और चंद लम्हों की पहचान भर रह जाए !

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