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रील और रियल में फ़र्क है साहब …

dhairya
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दौलत-शोहरत के छलकते जाम में जब मजबूत और चैड़ी कदकाठी का काॅकटेल मिला, तो संजय ने रील किरदारों को रियल लाइफ में भी निभाना शुरु कर दिया। नशे की लत से तो वे जैसे-तेसे बाहर आ गए, पर अपनी छवि सुधारने को लेकर आज भी वे संघर्ष करते दिख रहे हैं। 20 साल बाद लौटा कानून का ’जिन्न’ क्या संजू बाबा को समाज की मुख्यधारा से जोड़ पायेगा ?

घोड़ा कितना भी विश्वसनीय या सीधा क्यूं न हो, घुड़सवार को उसकी लगाम हाथ में रखनी ही होती है। वक्त और हालात खराब होने के लिए आप और आपके फायदे का इंतज़ार नहीं करते। हमें एक घुड़सवार की तरह जि़ंदगी की लगाम को भी जि़म्मेदारी और सूझबूझ से कसे रहना होता है, इससे पहले कि आपकी फितरत और जुनून इसे बेकाबू न होने दे। 12 मार्च 1993 में मायानगरी विस्फोट से दहली थी, जिसमें 257 निर्दोष लोगों की बेहद दर्दनाक मौत हुई थी। टाडा कोर्ट ने अभिनेता संजय दत्त को धमाकों के दौरान ए.के. 56 रखने पर छह साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैंसले में संजय को एक साल की रियायत देकर पांच साल की सज़ा बरकरार रखी है। कैसे बाॅलुवुड के सदाबहार नायक सुनील दत्त का चिराग साल दर साल विवादों और मामलों में नज़र आता रहा, और क्या वज़ह रही कि संजय रील लाइफ के किरदार रियल लाइफ में भी बदस्तूर निभाते चले आये।
पद्मश्री सुनील दत्त साहब ने गुज़रे ज़माने में न सिर्फ बेहतरीन अभिनय से देश का दिल जीता बल्कि एक साल के साफ-सुथरे राजनैतिक कॅरिअर में भी वे बेहद व्यवहारकुशल ओर संजीदा साबित हुए। 1981 में जब संजय दत्त ने फिल्मी दुनिया में अपने कदम ज़माने की मंशा जताई, तब उन्होंने ही फिल्म राॅकी से बेटे को लांच किया। धीरे-धीरे रोमांस और नटखटी किरदारों से संजय दत्त ’बाॅलीवुड के डाॅन बन गए’, और ’मुंबई के ’संजू बाबा’। पर्दे की गुंडागीरी ने संजय की छवि को ऐसा दबंग और कद्दावर बनाया कि वे आज रियल वल्र्ड में भी अपनी मासूमियत और बेगुनाही साबित करते घूम रहे हैं।
पंजाबी परिवार में पले-बढ़े संजय ने चंडीगढ़ से स्कूली शिक्षा ली और पिता की अभिनय गाथा पढ़तेे-देखते और सुनते हुए बड़े हुए। 1987 में वे अभिनेत्री रिचा शर्मा के साथ शादी के बंधन में बंध गए, यहीं से उन पर समस्याओं की धीमी बरसात शुरु हुई। रिचा की ब्रेन ट्यूमर के चलते मौत हो गई। मां से बिछड़ने के बाद बेटी भी संजय के दुलार और प्यार से दूर नाना-नानी के साथ विदेश रहने चली गई, ऐसे वक्त में बेटी को साथ न रखने पर भी संजय के परिवार में भीतरखाने कहासुनी चलती रही। कुछ सालों बाद रिया पिल्लई के साथ उन्हेांने नए रिश्ते की शुरुआत करनी चाही पर आपसी मतभेदों के चलते दोनों मंे तलाक हो गया। आज वे मान्यता की जि़ंदगी का हिस्सा हैं, और बीस साल पहले हुई आम्र्स रखने की गलती को रुंधे गले से स्वीकारने को मजबूर भी ।
संजय को दादागीरी के साथ-साथ नशे का भी बेइंतिहां शौक रहा, 1981 के आस-पास वे नशीले पदार्थ रखने के जुर्म में पांच महीने हवालात मंे रहे। विवादों और उलझनों में संजय की सक्रिय भूमिका रही। दरअसल दर्शकों के बीच आईं उनकी फिल्मों ने भी लोगों के दिमाग में यह कूट-कूट कर भर दिया कि वे असल जि़ंदगी में भी ना-नुकर बर्दाश्त न करने वाले कद्दावर अभिनेता हैं। तमाम निर्देशकों का संजू को दादा कहकर मीडिया मंे प्रोजेक्ट करना, उन्हें फिल्मों में बंदूक-कारतूसों से सजाये रखना भी उनके लिए कुछ खास अच्छा साबित नहीं हुआ।
फिल्म विधाता, जीवा, मेरा हक, कानून अपना अपना में संजय ने बेहद संजीदगी से कभी पुलिस के किरदार में दुश्मनों के छक्के छुड़ाये तो कभी ’दुश्मन’ बनकर पुलिस पर गोलियां बरसाईं। बाॅलवुड निर्देशकों को उस वक्त संजय के रूप में एक चैड़े सीने वाला ऐसा कलाकार मिल गया था, जिसमें हंसाने का भी हुनर था और आतंक फैलाने की प्रतिभा भी। संजय की बहुत ही कम ऐसी फिल्में रहीं जिनमें वे जाम छलकाते या धुएं के छल्ले उड़ाते नज़र नहीं आये। आतंक ओर अपराध को पर्दे पर दत्त ने दानव की तरह पेश किया, इसी बीच जब उन पर कोई भी केस दर्ज हुआ तो लोगों का भरोसा उनकी बेगुनाही से उठता गया। यही कारण है कि आज बाॅलीवुड का यह सूरमा सज़ा के चंगुल में फंस चुका है और उनके प्रशंसक भी संजू के लिए सिर्फ कोरी संवेदना ही व्यक्त कर पा रहे हैं।
1999 का एक दौर आया जब संजय दत्त को लोगों ने हाथों-हाथ लिया और उनकी छवि सुधारने मेें हसीना मान जायेगी, चल मेरे भाई, साहिबां जैसी मनोरंजक फिल्मों ने बड़ी भूमिका अदा की। हालांकि सिर्फ गुंडागीरी के किरदार ही किसी अभिनेता की छवि का पैमाना नहीं होते, पर संजय पर लगे आरोप जब सही साबित होने लगे, तो लोगों ने उनकी फिल्मों को ही संदेश के तोर पर लिया और अभिनय की विरासत लिए यह कलाकार कानून को भी अपने हाथ में लेता रहा। 2002 में आई मुन्ना भाई एमबीबीएस और लगे रहो मुन्ना भाई, से उनकी छवि सुधारने की बेजोड़ और सफल कोशिश हुई, जिसके बाद संजय दत्त काफी समय तक समाज के हितैषी बने रहे। मुन्नाभाई सीरीज़ के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी उन्हें सम्मान मिला। उनकी हालिया फिल्म अग्निपथ और जिला गाजि़याबाद भी अभिनय की कसौटी पर खरीं उतरीं। एवार्डों ओर सम्मानों में भी संजय ने फिल्मफेयर से लेकर, बेस्ट एक्टर का खिताब भी कई बार हासिल किया, पर अफसोस असल जि़ंदगी में वे बेस्ट ह्यूमन होने से हमेशा चूकते रहे।
न्यायालय के निर्णय का सम्मान करना देश के हर नागरिक का कर्तव्य है, और संजय ने भी फिलहाल मीडिया ओर प्रशंसकों से यही बात कही है, पर असल में यह चैड़ी कदकाठी का अभिनेता पूरी तरह टूट चुका है। नशे की लत ने मुन्ना भाई को भले ही बाॅलीवुड से पांच साल दूर रखा और वे वापस पटरी पर आये, पर 20 साल बाद लौटे इस जिन्न ने उनकी निजी और सामाजिक पृष्ठभूमि पर कई बेदाग छींटे उछाल दिए हैं। हथियार रखने जैसी संगीन गलती भले ही उन्होंने किसी परिस्थितिवश की हो, पर दत्तवंश का यह चिराग अब जेल में अपना प्रायश्चित करने को झुकी आंखों से तैयार है।
संजय के प्रशंसक तब भी उन्हें निर्दोष और संजीदा मानते थे और अब भी, पर अदालतें जज़्बातों पर नहीं सुबूतों पर चलतीं हैं। यदि देश के इस नागरिक ने अपराध में पैर भिड़ाये हैं, तो सजा मिलेगी ही, और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी करायेगी। एक बात और, राजनीति हर किसी के लिए फिट नहीं होती, अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए संजय ने भी सियासत के गलियारों में कदमताल की, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ने के बजाय, साख और निष्पक्षता में कमी आई। संजय समझ चुके होंगे कि अच्छे वक्त में जो राजनीति उनके ग्लैमर का फायदा उठा रही थी, आज वह सिर्फ संवेदना और सहानुभूति के बयानों तक सिमट कर रह गई है। फिर चाहे वह जयाप्रदा का बयान हो या मुलायम सिंह का रस्मअदायगी कंपेनसेशन, आज संजय के साथ सिर्फ उनकी गलतियां और गिले-शिकबे ही सिर झुकाये खड़े हैं। सीधे शब्दों में कहें तो संजय आज कानून के नहीं, अपने आप के अपराधी साबित हुए हैं।

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