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वर्कप्लेस पर सिर्फ महिलाआंे की आबरू ही नहीं, कभी-कभी पुरूश का ईमान भी दांव पर लग जाता है। पुरूश-षोशण की षिकायतें इक्का-दुक्का होने पर इन्हें या तो दबा दिया जाता है, या समाज इन पर भरोसा नहीं कर पाता।
इसमें कोई दोराय नहीं कि 63 साल की रिपब्लिक का रंग अच्छाई और बुराई दोनों से घुला-मिला रहा है। इस गणतंत्र दिवस पर हमेशा की तरह दिल्ली के राजपथ पर परेड-सलामी, झांकियों-उपलब्धियों ने हमारा मनोरजंन, उत्साहवर्धन किया। यहां तक कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जनता के नाम सन्देश भी महिला सशक्तिकरण का लिफाफा रहा।
युवाओं के जमघट और सोशल मीडिया के तेवर ने सरकार का एकबारगी ही सही, पर ध्यान खींचा है। कामकाजी दुनिया में महिलाएं और पुरूष दोनों ही अपनी प्रतिभा के दम पर कदमताल कर अपना भविष्य संवार रहे हैं। वर्कप्लेस पर सिर्फ महिलाआंे की आबरू ही नहीं, कभी-कभी पुरूष का ईमान भी दांव पर लग जाता है। पुरूष-शोषण की शिकायतें इक्का-दुक्का होने पर इन्हें या तो दबा दिया जाता है, या समाज इन पर भरोसा नहीं कर पाता।
इकोनाॅमिक टाइम्स की सर्वे रिपोर्ट में दिल्ली, मुंबई, बैंग्लोर समेत सात शहरों के 527 मेल प्रोफेशनल्स की शिकायतों में उनका महिलाओं के द्वारा शोषण किया जाना सामने आया है। इनमें से 19 फीसदी मर्द खुलकर अपने साथ हुए यौन-शोषण को एक्सेप्ट कर रहे हैं। बैंग्लोर की चकाचैंध प्रोफेशनल लाइफ में भी 51 फीसदी पुरूष महिलाओं के हैरेसमेंट के शिकार हुए हैं। सर्वे में दिल्ली के 31 और हैदराबाद के 38 प्रतिशत हैरेसमेंट-केसिज़ महिलाओं के खिलाफ फाइल किए गए हैं।
इन कहानियों की कहानी पर वह शख्स कुछ हद तक यकीन कर सकता है जिसने अव्बास-मस्तान की फिल्म ’एतराज’ देखी हो। हालांकि मेल-हैरेसमेंट की स्ट्रेंथ फीमेल हैरेसमेंट के मुकाबले कहीं स्टैंड नहीं करतीं, पर सिर्फ इस बात से हम पुरूषों को नज़रंदाज भी नहीं कर सकते। कामकाजी जीवन में कब कौन सा व्यवहार और इशारा हैरेसमेंट में शामिल हो जाता है, किसी ठोस बुकलेट में नहीं लिखा।
क्या मर्दानगी का चोला ओढ़े पुरूष और उनका पौरूष महिलाओं से सुरक्षित है ..? महिलाविरोधी मानसिकता की बेढि़यां कहीं हर पुरूष के गले तो नहीं मढ़ी जा रही ..? वर्कप्लेस पर पुरूष बेवजह हेरेसमेंट के शिकार तो नहीं हो रहे .? पुरूष और उसकी सुरक्षा पर आंकड़ों और घटनाओं से मर्दानगी का पक्ष रखता एक वाकया:
दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी के असिस्टेंट मैनेजर शिवराज ढोलकिया एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद काॅमर्शियल सैक्टर में अपने कॅरिअर का सपना संजोने चले शिव आॅफिस के पहले दिन से ही इस तरह के हैरेसमेंट के शिकार बने। उनकी महिला बाॅस उनकी काबिलियत से इतनी इंप्रेस्ड हुईं कि उन्हें हर शाम मीटिंग के बहाने अपने घर इनवाइट करने लगीं। नई नौकरी, नए बाॅस के मोह में कुछ दिन तो शिवराज ने उनकी हां-हुज़ूरी की फिर तंग आकर नौकरी से रिज़ाइन दे दिया। ’’मैं शिकायत भी तो नहीं कर सकता था। आखिर कौन विश्वास करता कि एक महिला ने पुरूष का उत्पीड़न किया।’’ मेल हैरेसमेंट पर शिवराज ने अपनी बात कुछ यूं रखी।
देश से बाहर अगर कदम रखें तो 2009 में यूएस के अंदर जितनी भी हैरेसमेंट के केस फाइल हुए उनमें 16 फीसदी शिकायतें महिलाओं के खिलाफ थीं। 2001 के मुकाबले 2008 में 2200 मेलविक्टिम्स की वृद्धि ने मसले को मोस्ट सीरियस बना दिया था। हालांकि ऐसे दलदल में फंसने पर सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार आयोग का रोल पीडि़त-पुरूषों के लिए संजीवनी साबित हुआ है।
यदि महिला ने किसी पुरूष की मर्यादा और मानिकसकता को चोट पहुंचाने की कोशिश की है तो उसे प्रूव करना सबसे कठिन हो जाता है। वरिष्ठ कानूनी सलाहकारों की मानें तो एक बार बलात्कार तो सिद्ध किया जा सकता है पर सैक्सयुअल असाॅल्ट को प्रूव करना टेढ़ी खीर साबित होता है। सुधीर मिश्रा की हालिया फिल्म इनकार में भी इस उदाहरण को देखा जा सकता है। यह कड़़वा-सच है कि भारतीय समाज महिलाओं को केंद्र में रखकर ही पुरूष और पौरूष को मापता है, जिससे पुरूषों के साथ इनजस्टिस के चांसेज़ बढ़ जाते हैं। आईपीसी की धारा 354 का हैरेसमेंट कानून पुरूषांे पर लगाम तो कंसने में सक्रिय है पर उनके हितों को दरकिनार कर रहा है।
यदि हम महिला-पुरूष को हर क्षेत्र में बराबर का भागीदार मान रहे हैं, तो कानूनन भी पुरूषों के हित का ख्याल रखना होगा। जब-जब पुरूष-उत्पीड़न के मामले सामने आएं तब हमारा समाज और कानून लाचार और बेबस नहीं, सख्त और समान दिखे, तभी एक सभ्य, सशक्त और काबिल गणतंत्र का सपना सच हो सकता है। अगला रिपब्लिक डे शायद ऐसे मुद्दों पर लिखने को विवश ना करे ! जय हिन्द !
कायनात के पंक्षियों का कलरव कमाल है
ख़ुदा की रहमत-ए-इनायत का कैसा सवाल है ….
ना बांट न्याय-अधिकार को इस लिंगभेद में …
स्त्री-पुरूश का रिष्ता जहां में बेमिसाल है !
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