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पुरवाई के पीछे है …. तूफान की आहट

dhairya
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पाकिस्तान के साथ भारत कूटनीतिक हल के विकल्प को ठीक मान रहा है, पर दो जावांजों की षहादत भी दरकिनार ना की जाये … फिलहाल अभी उन अफवाहों को टटोलने का वक्त है, जिसमें चीन का पाक को मदद करना, उसे पैसों के साथ-साथ स्पेषल इंस्ट्रक्षंस देना सामने आया है …..

loc16गोलियों की धड़धड़, बूटों की खटखट, सन्नाटे को चीरती फ्लैग मार्च, देखते ही देखते खून से लथपथ जिस्मों का लुड़कना, एलओसी के दोनांे छोर पर घटना-ए-आम है। पुंछ से सटा गांव दलान हो, या घाटियों की चोटी में सहमा सरिया। यहां बसे परिवारों के लिए यह तसवीर-ए-हनक आम है। 26 नवंबर 2003 को हुए सीज़फायर पैक्ट में भले ही दोनों देशों की हुकूमत ने हथियार-बारूद से तौबा करने का मन बनाया था, पर बंदूकधारियों की बंदूकें भी क्या भला शांत रह सकतीं हैं …? लायंस हेमराज और सुधाकर को शहीदे होते देख ना सिर्फ भारत की आवाम में आक्रोश है, बल्कि दोनों देशों की सियासत में सरगर्मी है। दरअसल इस मसले के मुखौटे पर गलतफहमी का हिज़ाब भी लिपटा हुआ है।
19वीं डिवीज़न के भारतीय कमांडर्स ने चरूंधा गांव में बंकर बनाकर दानव के पिंजड़े के बाहर चिंगारी सुलगाने जैसा काम किया। पाकिस्तान की तरफ से हुई फायरिंग की ठोस वजह कहीं न कहीं यहीं से होकर जातीं हैं। एलओसी के 150 मीटर के दायरे में बना बंकर, गांव की सुरक्षा ना बनकर उसका विनाशक साबित हुआ। 235 घरों के निर्दोष लोग अक्टूबर 2012 में भी गोलियों से भूने गए, लेकिन तब अखबारों-चैनलों की सुर्खियां इनसे बेखबर रहीं।
मीडिया और सरकार की गुपचुप भूमिका ने इस हलचल को दबाये रखा। इस बीच ये खबर भी उड़ी कि दोतरफा गोलीबारी में एक पाक सैनिक की भी जान गई। श्रीनगर से 140 किलोमीटर दूर बसा यह गांव पिछली 6 जनवरी को फिर गोलीबारी का शिकार हुआ। 8 जनवरी 2013 को दो जाबांज हेमराज-सुधाकर पर घने कोहरे का फायदा उठाकर पाक सैनिकों ने बर्बरता दिखाई।
यूपीए सरकार इस गर्म मसले को शांति और ठंडे दिमाग से हल करने को प्रतिबद्ध है, और हकीकत में चारा भी यही है। दो महीने बाद पाकिस्तान में चुनाव है, हर बार की तरह भारत-विरोधी बनकर हुकूमतें पाक-आवाम की हिमायती होने का ढोंग रचतीं हैं। ज़ाहिर है जनरल अशफाक परवेज कयानी अपनी सेना के साथ विश्वसनीय होने का दम दिखाकर ऐसी मुठभेड़ों का नुक्कड़ पेश कर सकते हैं।
भारत का वाॅयलेंट रिएक्शन पाक हुकूमत के चुनाव-स्पेशल टास्क में संजीवनी साबित हो सकता है। विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने दूरदर्शिता दिखाते हुए मसला शांति से हल करने का सटीक बयान दिया है। इस बयान के पीछे छिपी कायरता को नहीं, दूरदर्शिता और देशहित को भी ध्यान में रखकर चलना होगा। फिलहाल हमें अभी उन अफवाहों को टटोलने की ज़रूरत है जिसमें चीन का पाक को मदद करना, उसे पैसों के साथ-साथ इस्पेशल इंसट्रक्शंस देना सामने आया है। डिफेंस सोर्सिज ने एक इंग्लिश डेली को बताया है कि चीन की पीपुल्स रिपब्लिकन आर्मी लगातार पाकआर्मी के ज़हन में भारत-विरोधी कूटनीतिक हौंसला भर रही है। पीएलए पार्क बाॅर्डर पर बंकर बनाकर पाकिस्तान की मदद को बेताब दिख रही है। ऐसी सनसनी पहली बार ही नहीं है जब चीन पाक-हिमायती बना है, 2010 में पाक के अट्टाबाद इलाके में हुए लैंडस्लाइड के बाद चीनी सेना ने अपने मदद के हाथ बढ़ाये थे। पूर्व जनरल वी.के. सिंह भी चीन की ऐसी गतिविधियों पर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं।
मामले का निचोड़ सिर्फ यही नहीं कि भारत को शांत रहकर पाक चुनाव का मोहरा नहीं बनना है, बल्कि कूटनीतिक कार्रवाई में पाक से सख्ती से जवाब-तलब, आपसी सहमति से चैन-ओ-अमन पर मुहर लगानी है। सेनानिवृत्त मेजर जनरल अशोक मेहता का यह बयान भारतीय नागरिकों के ज़हन में हौंसला-ए-हिम्मत बनाये रखने के लिए काफी है ’’एक बड़े शड़यंत्र को अंजाम देने की कोषिष सीमा पार से हो रही है, लेकिन सरहद पर मौजूद हमारी फौज इसका मूंहतोड़ जवाब देने को तैयार डटी है।’’

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