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यदि आप हाईबजट फीस एफोर्ड कर सकते हैं तो आस्था चैनल के टिकर में दानदाता के नाम से चमचमाएंगे। यदि कहीं आप मिडिलक्लास स्टाइल से हैं तो आस-पड़ोस की कथा-रामायण में दस का नोट चढ़ाकर जमकर क्रपा लीजिए, और प्रसाद भी …….
गुरू का आविष्कार भक्तों के नेटवर्क को भगवान के कंट्राॅलरूम से जोड़ने के लिए किया गया था। इस शब्द को महानता और बेहद सम्मान का दर्जा इसीलिए हासिल था। गुरू जी की भूमिका ’सरकारी मीडिया’ की थी जो भक्तों को भगवान की नीतियों, पसंद-नापसंद से टाइम-टू-टाइम रू-ब-रू करवाता रहे। कलियुग के नाम पर समाज में बदलाव के जो करिश्मे हुए तो ’गुरू’ शब्द के कई पर्यायवाची सामने आये। भक्तों की भीड़ में, श्रद्धा की रीढ़ में, तमाम गुरू भी ’गुरू’ बनकर अरबपति उर्फ श्रद्धेय हो लिए। 2001 में संसद में ए.के.-47 से धड़धड़ मंचाने वाले बरखुरदार का सरनेम भी ’गुरू’ ही था।
गुरूओं ने जीने के तरीके से लेकर ’पीने’ के तरीकों तक पर नज़र डाली, कुछ ने काले पर्स को रईसी का रास्ता बताया, कुछ ने अनुलोम-विलोम से हेल्दी लाइफ के सपने। जीने का तरीका सिखाते हुए एक गुरू जी ने सरकारी स्कूल में पढ़ने वालों को नक्सलवाद से जोड़ा तो पिछले दिन एक गुरू महाराज दिल्ली रेप पीढि़त पर ही आरोप तय कर गए। बलात्कारियों को राखी बांध, भाई बनाकर रेप से बचने की ’टेक्निक’ भी महिलाओं को हाथों-हाथ बता गए। 12 साल बाद आये कई गुरूआंे से आप संगम तट पर विजि़ट कर सकते हैं, बशर्ते आपका शिड्यूल अर्ली टू राइज़ हो।
यह शब्द इतना पाॅपूलर हुआ कि एक धूम्रपान कंपनी ने ’गुरू’ टाइटलनेम से पान मसाला लांच किया। चैराहे पर लगे होर्डिंग्स में बड़े अक्षरों में लिखवाया ’’और गुरू, खाओ गुरू , कुछ नया सा स्वाद गुरू ….. ’’ ! ऐसा नहीं है कि सभी गुरू, गुरू घंटाल बन, बाई चेक, डीडी, कैश ही क्रपा को फ्लैश कर रहे है, कई संत-साधु टाइप गुरू दिल से अपने भक्तों और संसार के वेलविशर हैं। ऐसे गुरूओं की इमेज और आइडेंटिटी, ट्रस्ट एंड क्रेडिबिलिटी भी उन ’गुरू’ की वजह से डाउन हुई है।
कई सौ साल पहले संतकवियों ने सवाल उठाया था कि ’गुरू गोविंद दोउ खड़े ……. काके लागूं पांव ’।आधुनिकता की चैपाल मंे नए गुरूओं की ज़मात शायद संदेश को इस तरह पेश करती है ’’गुरू-’गुरू’ कइउ खड़े काके लागूं पांव’’ । अब पांव लगने का सवाल भी आपके स्टेटस पर डिपेंड करता है। यदि आप हाईबजट फीस एफोर्ड कर सकते हैं तो आस्था चैनल के टिकर में दानदाता के नाम से चमचमाएंगे। यदि कहीं आप मिडिलक्लास स्टाइल के हैं तो आस-पड़ोस की कथा-रामायण में दस का नोट चढ़ाकर जमकर क्रपा लीजिए, और प्रसाद भी।
यदि आपके अंदर भक्ति की ज्वाला अब भी धधक रही है तो संगम तट पर आॅरिजनल-कम-ब्राण्डेड साधुओं के भी दर्शन होंगे। कड़कड़ाती ठंड में खुले बदन पर भक्ति और समर्पण की राख लपेटे इन महात्माओं के चरण-स्पर्श करिए। क्रपा पाने से पहले इनसे ठंड-ठिठुरन सहने के उपायों पर चर्चा को प्राथमिकता दें। हां, शक्ति और मुक्ति का जहां तक सवाल है, असल में एक बवाल है। शास्त्रों की एक लाइन के बेसिस पर अपने भटकते, लार टपकाते मन को कनविंस करें ’जाइ विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ……. ! सीता राम, सीता राम और ………. सीताराम ही कहिए !
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