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ये तो सच है कि भगवान है

dhairya
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एग्ज़ाम्स में पास होने के लिए पांच सौ एक का प्रसाद, नौकरी लगने पर एक हज़ार एक की चढ़ौती जैसे हाई-फाई वादे अब भगवान पसंद नहीं करते, उन्हें कड़ी मेहनत और जुनूनी प्रयास से खुष करना होगा ……

निक्की उस वक्त गहरी नींद में था, साइड मेें रखी अलार्म घड़ी तो उसने हाथ मार के साइलेंट कर दी थी, पर किचेन से आती मम्मी की आवाज़ उसे किसी गुस्ताखी से कम नहीं लग रही थी। घड़ी ने सुबह के सात बजा रखे थे, और स्कूल टाइम में अभी पूरा एक घंटा था। अचानक दादी ने निक्की की रज़ाई हटाई और उसे प्रसाद देते हुए गहरी नींद से जगा दिया।
निक्की मन ही मन बुदबुदाया और रह गया। फ्रेश-रिफ्रेश होकर उसने स्कूल ड्रेस को हाथ ही लगाया था कि मम्मी ने डांटते हुए उसका हाथ पकड़ा .. ’’पूजा नहीं करनी है, भगवान के लिए भी टाइम निकाला करो !’’ उसे थोड़ा अजीब लगा पर उसने जल्दी से दो अगरबत्तियों को धुआं दिया और चलता बना।
निक्की की मां, दादी और दादाजी गाॅड को खुश करने के लिए हर रविवार सत्यनारायण कथा और हर बुधवार फास्ट रखा करते थे। घर का माहौल श्रद्धा और भक्ति से रंगारंग और डिवोशनल तो था, पर शायद निक्की इसे ’ओवर’ समझने लगा था। वह भगवान को मानता तो था, पर इतना डिवोटिड नहीं होना चाहता था कि वह मेंटली डीएक्टीवेट हो या काॅलेज के लिए लेट तक हो जाये।
अपने पेरेंट्स का ज़बर्दस्त डिवोशन उसे कभी एग्ज़ाम्स में लेट करवाता था तो कभी उसे बर्डन फील भी होता था। आज का यूथ भगवान को मानता है, पर साथ ही वह कर्म करने में विश्वास रखता है। वह अपना लक्ष्य अपनी मेहनत और लगन से पा लेना चाहता है, जिसके लिए वह किस्मत-रेखाओं, गृह-नक्षत्रों का मौताज नहीं है।
’गाॅड हेल्प दोज़, हू हेल्प देमसेल्वस’, और ’हार्डवर्क इज़ दा की टू सक्सेज़’ जैसे मुहावरे ऐसे ही नहीं गढ़े गए। हाथ पर हाथ रखे, या सिर्फ माला फेरने से न तो जग जीता जा सकता है और ना जंग। आज की युवा पीढ़ी भगवान को दिल में रखकर नमन करती है। ईश्वर की बनाई चीजों को उन पर ही चढ़ावे के तौर पर चढ़ाना अब पुराना हो चला है। मीरा, प्रहलाद और ध्रुव ने भी अपने दिल से ईश्वर को अपना बनाया था, उनके समर्पण और श्रद्धा से भगवान प्रसन्न हुए थे, ना कि खीर, सोनपापड़ी और रसगुल्लों या चढ़ावे से।
आज हम अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कड़ी मेहनत और जज़्बे से उसे हासिल करना चाहते हैं। परीक्षा में पास होने के लिए पांच सौ एक का प्रसाद, नौकरी लगने पर एक हज़ार एक की चढ़ौती जैसे हाई-फाई वादे अब भगवान पसंद नहीं करते, उन्हें कड़ी मेहनत और जुनूनी प्रयास से खुश करना होगा। गीता में भी श्रीकृष्ण ने इंसान के कर्म को ही भगवान माना है। उनका आशीर्वाद तभी तक एक्टिव है जब तक हम तन, मन और धन से अपने टार्गेट को लेकर एक्टिव हैं।
आओ मेहनत को अपना ईमान बनाएंे
अपने हाथों को अपना भगवान बनाएंे

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