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सुबह नहाने वालों को ’परमवीर चक्र’

dhairya
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क्या संविधान में संशोधन कर, कड़कड़ाती ठंडी में तड़के नहाने वालों को परमवीर चक्र नहीं मिलना चाहिए ……?
घड़ी का अलार्म ट्रिन-ट्रिन करके जगाने को बेताब था, बीच-बीच में मम्मी की आवाज, उठो स्कूल नहीं जाना है क्या …? भी गुस्ताखी सी लग रही थीं। दिन था एक जनवरी। अचानक उठकर सबसे पहले मैंने मोबाइल के ’चरणस्पर्श’ किए, और लगे हाथ बधाई संदेशों पर सरसरी निगाह डाली। हमारे स्कूली मैडम-मास्टर छूट्टी पर एक्सट्रा-क्लास, न्यूईयर पर तोहफा देना कभी नहीं भूलते। भई !आज ही के दिन हम स्टुडेंट्स उनसे पार्टी जो लेते हैं। इन सब बातों को पीछे छोड़कर हाड़कपाउ ठंड में बस एक ही बहादुरी चर्चा-ए-आम हुआ करती है। वो है ’नहाना’ और ’टेक बाथ इन कोल्ड’ ।
सूरज चाचू भले ही ना जागें पर हमेें ठिठुराती ठंडी में खुद पर दो मग पानी उड़ेलना ही होता है। रजाई-कंबल की दुनिया भी उस प्रेमिका की तरह है, जो अपने लवर को छोड़ने का मन नहीं करती। भले ही मौसम विज्ञानियों की याद संवाद्दाताओं को इन्हीं महीनों मे आती हो पर मूंह से निकलती भाप से हम अंदाज़ा लगा लेते हैं कि आउटसाइड-टेम्परेचर क्या होगा। अब हमें दिल पर संगमरमर या मार्बल के पत्थर रखकर वाॅशरूम तक का सफर तय करना पड़ता है, जहां टब में लबालब ठंडा तरल पदार्थ हमारा इंतज़ार कर रहा है। कपड़े उतारना ठीक वैसा ही लगता है जैसे महिलाओं से उनके गहने उतारने को कह दिया हो, जिन्हें वे हर वक्त हिलगाये रहना चाहतीं हैं।
खैर कपड़े उतारने के बाद हमारी नज़र जल देवता पर पड़ती है, और बर्फीला बाइव्रेशन सा होता है, मानो हमारी बाॅडी ही बाइव्रेट मोड पर चली गई हो। फिर हमंे बहादुरी, जोश, जज़्बा, जुनून जैसी कई क्वालिटीस अपने अंदर लानी होतीं है। एक मग डालना ठीक वैसा ही है जैसे हमने तलवार उठाकर ठंडे दुश्मन पर पहला प्रहार किया हो। बस देखते ही देखते ठंडासुर छू-मंतर हो जाता है। फिर मन करता है कि बस मग-बाई-मग पानी उड़ेलते रहो, और बहादुरी के झंडे गाड़ते रहो। बाॅडीशैम्पू का नंबर आते-आते बाॅडी बाइव्रेट से नाॅर्मल मोड पर आ जाती है, जब तक कि आप गार्नियर कंडीशनर से अपने लहराते बालों को साॅफ्ट ना बना लें।
वाॅशरूम के बाहर का नज़ारा बेहद रोमांचित करने वाला होता है। हमने सूरज चाचू के जागने से पहले, कोहरे के भागने से पहले नहा जो लिया। घर के अन्य लोगों से हम बड़े गर्व के साथ पेश आते हैं। सामने जो भी व्यक्ति बिना नहाये दिखता है, उसे यह एहसास कराते हैं, बिड़ू ! हम तुमसे ज़्यादा बहादुर निकले। देखो, नहा भी लिए, ! कुछ महामानव चार बजे उठकर ही जल-डुबकी मार लेते हैं, तो कुछ दोपहर बारह बजे यह कदम उठाते हैं।
मेरी और मेरे जैसे तमाम लोग जो सुबह छ से सात बजे के बीच यह हिम्मत-स्नान करते हैं उनके लिए संविधान में कुछ संशोधन तो बनता है जी ….! कड़कड़ाती ठंडी में सुबह चार से सात बजे तक नहाने वालों को ’परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया जाये और साथ ही एक बाथ टब व बाॅडीशैम्पू इनामी राशि के रूप में प्रदान की जाये। ! जय हो ठंडभगासुरों की’ !
-मयंक दीक्षित
सकेतनगर, कानपुर।

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