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देश में एक बार फिर से आर्थिक सुधारों की पुरबाई ने महंगाई, आर्थिक असमानताऐं, लोक’हित’ जैसी नीतियों पर आंदोलित रूख अख्तियार कर लिया है। विपक्ष की घुड़कियां, जनता की नाराजगी के बीच यूपीए सरकार प्रत्यक्ष विदेषी निवेष को लागू करवाने में सफल रही। पिछले सत्र में एफडीआई पर त्रणमूल प्रमुख ममता बनर्जी समेत समूचे विपक्ष का पलड़ा भारी रहा पर इस बार विरोध के तराजू पर ममता उतना वज़न नहीं ज़मा पाईं, आखिरकार उन्होंने गठबंधन का बांट वापस ले लिया।
मल्टीब्राण्ड रिटेल में 51 प्रतिषत एफडीआई की मंजूरी, विमानन क्षेत्र में 49 प्रतिषत, सिंगल ब्रांड में 100 प्रतिषत पर जहां औद्योगिक वर्गों की मिलीजुली राय है वहीं विपक्ष इसे खुदरा व्यापारियों के लिए खतरे की घंटी मान रहा है।
किसी ज़माने में सोने की चिडि़या रहा भारत आज आंकड़ों की मुफलिसी का षिकार है। आर्थिक तंगी के चलते एक दषक से प्रतिवर्ष औसतन 17,500 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। देष में 47 प्रतिषत बच्चे कुपोषित हैं। विश्व बैंक के अनुसार, भारत में कुपोषित लोगांे की संख्या दूसरे नंबर पर है। गौरतलब है कि विष्व के 25 प्रतिशत भूखे लोग भारत में ही रहते हैं। यहां जब उपर वाला छप्पर फाड़ के देता है तो भंडारण के इंतजाम नहीं हो पाते या जैसे-तैसे हो भी जाएं तो कभी उचित एवं उत्तम मूल्य मिलने के आसार नज़र नहीं आते। माना कि एफडीआई किसानों व व्यापारियों की रामकहानी का रामबाण उपाय नहीं है पर इससे मुख्य तीन समस्याओं के हल नज़र आते हैं- कोल्डस्टोरेज के निर्माण, भंडारण सुविधा विकसित करने तथा बेहतर परिवहन के जरिए माल को सड़ने से रोकना। इससे पूंजी के प्रवाह में तेजी आयेगी। अंतिम उपभोक्ता के लिए तय की गई कीमत का किसान को लगभग दो तिहाई हिस्सा मिल सकेगा जो मौजूदा दौर में एक तिहाई भी मुष्किल से मिल पाता है। आम उपभोक्ताओं के हित में सबसे अहम बात है कि उन्हें ब्रांडेड, सस्ते, गुणवत्तापूर्ण उत्पाद एक ही छत के नीचे मिल सकेंगे। कृशिप्रधान देष के किसान उन्नत तरीके से उत्पादन कर बिचैलियों के दलदल से मुक्त रहेेंगेे, भंडारण की उचित व्यवस्था हेाने से वे आत्महत्या जैसे निराषावादी कदम नहीं उठायेंगे।
जब भारतीय कंपनियां अन्य देषों में प्रत्यक्ष निवेष कर मुनाफा बटोर रहीं हैं तो विदेषी कंपनियों से खुद को वंचित रखना कहां तक सही है और फिर इस निवेष से सरकार को 25-30 अरब डाॅलर टेक्स के रूप में भी मिलेंगे।
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