dhairya
- 53 Posts
- 314 Comments
मुझे तो अपनो ने लूटा, गैरों में कहां दम था ….
हम अंग्रेजी को शान समझ लिए, हिंदी से हमें गम था
शायद किताबों में इसे मात्रभाषा कहते हैं …..
बोलते हुए हिंदी हम क्यूं शर्म-झुंझलाहट सहते हैं ….
कोई नोच भी ले तो हम ’उई मां ’चिल्लाते हैं ….
फिर क्यूं हम इस मर्मीली-शर्मीली हिंदी से कतराते हैं।
वही हिन्दी है मेरे दोस्त, फूल बन इसे माली बना लो …
लिख डालो कविता शायरी या फिर इसी से गाली बना लो !
Read Comments