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पिछले महीने गांव में मुझे जबर्दस्ती भेजा गया, घरवालों की दलील थी कि नाना-नानी काफी दिनों से फोन कर कर के नाराज हो गये हैं, उन्हें मनाने जाना ही पड़ेगा। कूलर-पंखा, टी.वी. जैसी सुविधाओं को छोड़कर वहंा गया तो ऐसा कुछ हासिल हुआ जो षायद षब्दों में उस ढंग से व्यक्त ही नहीं हो सकता जैसा मैं चाह रहा हूं। आज मुझे तब की कुछ यादें घसीट लाईं जब मेरे पिता जी ने फोन कर के बताया कि वह दोस्त जो मेरे इटावा जाने पर सबसे पहले दौड़ कर गले लगता था, और चिल्लाता था कि ’’षिवम भाई, यार बड़े दिनों बाद आये’’ को उसी मोटरसाइकिल की रफ्तार ने छीन लिया, जिसे वह अपने पापा से कभी गिड़गिड़ाते हुए मांगा करता था, सुबह अपना मूंह बाद में धोता था, पहले गाड़ी को चमकाता था। पहले दिन जब गाड़ी घर आई तो उस पर तिलक किया गया, नंबर प्लेट पर भगवान जी का नाम लिखवाया गया, अगले ही दिन उसकी गद्दी पर अच्छा सा कवर लगवाया गया। क्या यही वो ’रफ्तार’ है जो एक मरते हुए को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए चाहिए ? क्या ये वही ’रफ्तार’ है जो पेपर देने निकले एक छात्र को समय से स्कूल पहुंचाने के लिए चाहिए ? क्या ये वही ’रफ्तार’ है जो समय से रेलवे स्टेषन पहुंचने के लिए एक यात्री को चाहिए ताकि उसकी गाड़ी न छूट जाये ? क्या वो दिन अच्छे नहीं थे जब बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी या तांगा या इक्का चला करते थे ? जब ये साली ’रफ्तार’ वही है तो वह क्यूं हमारे साथ भेदभाव कर रही है ? क्या मेरे दोस्त का दोश उसकी 14-17 साल की उम्र थी, जो उसे ’रफ्तार’ से लड़ने को उकसाती थी, या फिर उस ईष्वर को इस अबोध बालक का खुली हवा में पंख फैलाना रास नहीं आया, कारण जो भी हो, ये रफ्तार ही इसके लिए जिम्मेदार है, मैं इसे गिरफ्तार करने की सज़ा सुनाता हूं !
छोटू, मेरे मित्र जब भी मेरी नज़र मेरी छत के सामने वाली छत पे पड़ेगी, जब भी मुझे कोई ’षिवम भाई’ कहेगा, जब भी कोई सामने वाली दुकान से ’कुरकुरे’ या ’एल्पनलीबे’ लेके मेरे पास आके कहेगा कि ’क्यूं भाई लो ना, नाराज़ हो क्या ? तो तुम ज़रूर याद आओगे ! माना कि मैं सिर्फ तुमसे एक बड़े भाई की तरह ही बात करता था, पर जब भी कोई मोहल्ले में मेरा नाम बिगाड़ कर मुझसे ’चुहिया’ कहेगा तो तुम्हारी षक्ल खुदबखुद सामने आ जायेगी क्यूंकि उस आवाज़ में सबसे बुलंद आवाज़ तुम्हारी ही होगी।
कृपया इस लेख पर व्यर्थ कमेंट न करें, ये कोई मनगणंत नहीं, बल्कि मेरे दिवंगत मित्र ’छोटू’ के लिए सच्ची श्रद्धांजलि है, जिसे उस ’रफ्तार’ ने हमेषा के लिए छीन लिया है।
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