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व्यथा ……एक बेटी की !

dhairya
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व्यथा ……एक बेटी की !
’’माँ मैं कल स्कूल में हो रही भाषण प्रतियोगिता में भाग ले रही हूं, पंचायत से पूछ लूं घ् पता है, मेरी टीचर ने चार विषय दिये हैं जिन पर भाषण तैयार करना है- 1. आधुनिकता, 2. पौराणिकता, 3. रूढि़वादिता और 4. दकियानूसी सोच।
माँ मुझे तो 1. आधुनिकता पर ही बोलना है लेकिन क्या पंचायत वाले मानेंगे घ् वो तो मुझे 3. रूढि़वादिता या 4. दकियानूसी सोच पर ही बोलने को कह देंगे।
चलो बात तो माननी पड़ेगी ना माँ नहीं तो वो हमारा हुक्का-पानी बंद कर देंगे। माँ जब मैं कल स्कूल जाऊं तो क्या पहनूं क्यूंकि कल ड्रेस में नहीं जाना है, जींस पहनी तो पंचायत नोच-खसोट करेगी, मुझे सरेआम बदनाम करेगी, ऐसा करती हूं ’रूढि़यों’ की चादर ओढ़ लूंगी, ’दकियानूसी’ दुपट्टा डाल लूंगी और हां चेहरे पर ’पंचायती’ नकाब भी बांध लूंगी ताकि खाप पंचायतें मुझे अपनी ’आदर्श-बेटी’ बुलाएंे व कदम से कदम मिलाकर चल रहे समाज में मैं पिछड़ जाऊं, कुचल जाऊं, घुट जाऊं, मर जाऊं तभी इन पंचायतों की ’आदर्श-सूची’ में मेरा नाम इस ’आधुनिक समाज में अपवाद’ के रूप में लिखा जायेगा।
अब मैं सो जाती हूं माँ ,कल जल्दी उठ के भाषण भी तो तैयार करना है !’’

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