- 53 Posts
- 314 Comments
सिनेमा आने के बाद प्रेम विवाह शुरू हुए या प्रेम विवाह होने के बाद उन पर सिनेमा बने ये आज तक तय नहीं हो पाया है। भई हमें तो इस प्रक्रिया को समझने में वर्षों लग जाएंगे। परसों रात इस ’प्रेम’ पर मैं एक हसीन सपना देख रहा था पर सपना पूरा होता तब तक कमवख्त रात ही पूरी हो गई।
मां ने चादर खींच कर झकझोरा तो समझ आया कि बच्चू अभी बालिग बने हुए एक साल चार महीने तीन दिन ही हुए हैं। एसी विवादास्पद प्रक्रिया को सोचने की अभी उम्र नहीं हुई है। पर मैंने दिन में भी इस प्रथा के बारे में विचारना नहीं छोडा या यूं कह सकते हैं कि मैं पूरे दिन प्रेम की बखिया उधेड़ने में लगा रहा। अगले ही दिन पड़ोस में शोर मंचा, ’’भाग गई ! भाग गई! अपने नाथूराम की इकलौती बेटी शादी से पहले ही घर से भाग गई ! और तो और सामने वाला रामू धोबी भी फरार है’’ ! आस-पड़ोस तक इस बात ने जंगल में आग की तरह का सफर तय किया। चारों तरफ जितने मूंह उतनी ही बातें हो रहीं थीं। कोई कहता था कि बेटी में ही कमी थी तो कोई इल्जामों का घड़ा धोबी-पुत्र के सर फोड़ रहा था। कुछ गुटनिर्पेक्ष तो दोनों को ही दोषी ठहरा रहे थे। नाथूराम ने अपने नाते-रिश्तेदारों को खबर की तो वे सभी ’पीऐसी के जवानों’ की तरह आ धमके ओर लगे बेचारे रामू के घर वालों को धमकाने-हड़काने। गांव वालों के लाख समझाने पर भी लड़के पक्ष पर रिपोर्ट दर्ज करवाई गई जिसमें आरोप लगाया गया कि रामू धोबी का बेटा, मान-सम्मान का लोटा तलैया में फेंक नाथूराम की इज्जत को बहला-फुसलाकर भगा ले गया है। खैर भीतर गांव में इन दोनों के प्रेम प्रसंगों की चर्चा जोरों पर थी। लड़की का पिता भी छाती पीट-पीट कर सबसे कह रहा था कि हमारी फूल सी बेटी पर जादू-टोना कर बहला-फुसला के ले गया है ,,,,, हरामजादा कहीं का ! पुलिस ने भी धरपकड़ तेज कर दी थी ,,,,,,, उस दिन लगा कि भइया प्रेम विवाह के चक्कर में ना पडि़यो नहीं तो भले ही लड़की ने ही जिद की हो कि मुझे यहां से दूर हसीं वादियांें में ले चलो पर सुबह उठकर यही कहा जायेगा कि लड़के की ही करतूत है ,,,,,, वही बहला-फुसला के भगा ले गया है। कानून को ये समझना चाहिए कि जब लड़का-लड़की दोनों बालिग और समझदार हैं तो सिर्फ लड़की कैसे बहल गई ! क्या सिर्फ लड़के पर ही दोष मड़ना ठीक होगा !!!!
Read Comments