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अपशब्द …… !

dhairya
dhairya
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हो रही बाजार में चारों तरफ हड़ताल है,
क्या है ये सीऐजी या सीबीआई पड़ताल है।
कब तक करोगे ना-नुकर, तोड़ोेगे शीशे कांच के,
लोकतंत्र तो किताब है, तानाशाही की करताल है।

पैट्रोल-रसोई की पीड़ा अब सही जाती नहीं,
त्रस्त जनता, मस्त शासन, व्यस्त नौकरशाह हैं।
दरबारी है आवाम पूरी, वे ही शहंशाह हैं,
मंहगाई-घूसखोरी की बदबू क्यों यहां से जाती नहीं।

कर रहे नुकसान अपना ही ,रेलगाड़ी रोककर,
लगा रहे आग अपने ही टेक्स की संपत्ति को।
मुआवज़ा-भरपाई भी होगी हमारी ही जेब से,
फायदा नहीं मंत्री के पुतले में चार चाकू भोककर।

जो देते हैं समर्थन छोड़ने की धमकियां उन्हें, (ममता बनर्जी)
वे आईपीएल वालों को वहां सोना पहनाते हैं।
सदन में गुर्राते हैं, चीखकर, अकड़कर वही,
बैठक खत्म कर अभिवादन कर, भाग जाते हैं।

ना जाने क्या होगा इस लोक के तंत्र का,
चलेगी लड़ाइयां कब तक बंदरों जैसी।
हम आ गये अगर अपने लव्बोलुआब में,
तो कर देंगे ऐक ऐक की ऐसी-की-तैसी।
……..0……… मयंक दीक्षित
आम नागरिक।

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