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फिक्सिंग की चादर में आईपीएल के पांव

dhairya
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क्रिकेट के दरवाजे पर सट्टेबाजी की दीमक वर्षों से उसके साख-सम्मान को कुरेदती आई है; अंतर सिर्फ इतना रहा कि अतीत में इस तरह के वाकये कभी-कभार ही सुनने को मिलते थे। पर जैसे-जैसे क्रिकेट आधुनिक पायदान पर अपने कदमे जमाता गया; सट्टेबाजी की दीमक भी जिन्न बन बाहर आती रही। अंतरराष्ट्रीय मैचों से लेकर घरेलू मैचों तक में कहीं ना कहीं फिक्सिंग की बू आती रही। खिलाडि़यों को खरीद कर घरेलू मैचों का आयोजन जिसे हम-आप आईपीएल के नाम से जानते हैं, में कई सटोरियों ने कमजोर खिलाडि़यों को अपना निशाना बनाया। हाल में हुए एक खबरिया चैनल के स्टिंग आॅपरेशन में इस शर्मनाक गोलमाल का पर्दाफाश हुआ जिसमें पांच खिलाडि़यों को रेट तय करते दिखाया गया है। निजी प्रायोजकों की इन टीमों में जो खिलाड़ी खरीदे जाते हैं उनमें हजारों-करोड़ों की असमानता होती है। कुछ खिलाड़ी तो अरबों में ’खेलते’ हैं तो कुछ हजारेां के लिए भी तरस जाते हैं। मानवीय स्वभाव में इन असमानताओं से निपटने के कारणों में अवैद्य तरीके से पैसा कमाना कोई अजीब बात नहीं है। पर सवाल ये है कि क्या इस गोरख धंधे में शामिल खिलाडि़यों को मात्र सस्पेंड कर देने से बात बन जायेगी घ् क्या इस ’खेल सजा’ का असर भविष्य के सट्टेबाज खिलाडि़यों पर भय बनायेगा। बीसीसीआई ने अभी इन्हीं उधेड़बुनों की लहरों में आईपीएल की नाव को हिचकोले खाने के लिए छोड़ दिया है।
मयंक दीक्षित
साकेतनगर, कानपुर।

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