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’’मैम जी ये सवाल नहीं आए रहो’’, और ’’मैम प्लीज़ ये इक्वेशन साॅल्व करवा दीजिए’’। कुछ दिनों बाद प्राइवेट काॅलेजों की क्लास में कुछ इसी तरह का नजारा देखने को मिल सकता है। आरटीआई कानून के तहत अब निजी काॅलेजों को 25 प्रतिशत सीटें उन गरीब और पिछड़ेे छात्रों के लिए आरक्षित करनीं होंगी जो पैसे के आभाव में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने का सिर्फ सपना देख पाते हैं। 6-14 वर्ष के गरीब ग्वाल अब मिड्डे मील के लालच में नहीं बल्कि टाई-बेल्ट लगाकर शौक से ’ऐ फाॅर ऐप्पल’ सीखेंगे। ऐक तरफ तो यह कदम शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए उठाया गया है पर यदि सरकार ने 25 प्रतिशत का बोझ स्कूल मालिकों पर उड़ेला तो निश्चित है कि ये अतिरिक्त भार वे अन्य छात्रों की फीस बढ़ाकर वसूल करेंगे।ऐसे में असमर्थ पिछड़े तो कृपापात्र बन जायेगे और बाकी उच्चमध्यमवर्गीय अविभावकों की जेब ढीली होने का डर है। आम आदमी के मन में ये मलाल भी है कि कक्षा 8 तक हाईटेक पढ़ाई करने के बाद जब छात्र उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लेंगे तो क्या उसकी आर्थिक स्थिति सुधर चुकी होगी ! फिर यदि वह दोबारा सरकारी संस्थानों का रूख करते हैैं ,तो इस योजना का कोई लाभ दिखाई नहीं देता। यदि इस कानून का परिणाम ऐसा ही आया तो जो स्कूल मालिक ’ऐसी और आॅडियो-विज़ुअल क्लासरूम’ की तस्वीर दिखाकर बड़े अविभावकों से बड़ी फीस वसूला करते थे , उनकी शिक्षा दुकान घाटे का सौदा साबित होगी। हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने भरोसा जताया है कि 25 प्रतिशत की इस राशि केा सरकार ’एडजस्ट’ करेगी पर किस तरह ये अभी सामने नहीं आया है , ऐसे में आशंकाओं के बादल घिर आये हैं कि शिक्षा मेें असमानता लाते लाते कहीं निजी स्कूलों का पतन शुरू ना हो जाये।
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