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ये शब्द किसी शास्त्र-पुराण के दोहे नहीं बलिक कि्रकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के लिए मैंने प्रयोग किए हैं जिन्होंने हाल ही में बांग्लादेश के खिलाफ खेलते हुए अपना 100वां शतक पूरा किया है। अरबों कि्रकेटप्रेमियों के दिलों की धड़कन कहे जाने वाले सचिन कि्रकेट का दूसरा नाम बन चुके हैं इसमें कोर्इ दोराय नहीं हैं पर देश के लिऐ खेलने को सैकड़ों की टोली इन महारथियों के त्यागपत्र की राह देख रही है। माना कि सेालह साल की अल्पायु से इस खलाड़ी ने 1989 के पाकिस्तान दौरे से लेकर अब तक कि्रकेट रनभूमि में कर्इ जौहर दिखाऐ हैं, पर क्या अब भी उनमें वह चुसित-स्फूर्ति बरकरार है जो किसी नए खिलाड़ी में कूट कूट के भरी हो सकती है । इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सचिन के रिकाडोर्ं के आस पास कोर्इ भारतीय तो क्या ,अंतर्राष्टीय खिलाड़ी भी नहीं दिखता, उदाहरण के लिए डान ब्रेडमैन जिनके साथ महानता में सचिन की तुलना हो रही है , ने टेस्ट कि्रकेट में 99.94 औसत की बल्लेबाजी दर्ज की है। जो खिलाड़ी कम से कम 20 टेस्ट खेले, उनमें से कोर्इ भी 65 की औसत पर भी नहीं पहुंचा तो 99.94 औसत का रिकार्ड भला कैसे टूटेगा। एक अहम बात यह भी है कि सचिन के रहते भारतीय टीम अभी तक के 6 विश्वकप में से एक पर ही कब्जा जमा पार्इ है और हाल ही में उन्होंने जिस कछुआर्इ चाल से बल्ले को घुमाया है उससे टीम को कर्इ अहम मैचों में नुकसान उठाना पडा है। बात सिर्फ उनके एक दो खराब प्रदर्शन की नहीं बलिक उनकी उम्र और कार्यकाल की भी है । कोर्इ भी खिलाड़ी जो इतने लंबे समय से कि्रकेट के प्रथम पायदान पर टिका हो वह कभी स्वयं थकने व रिटायर होने जैसी बात नहीं कहेगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि यदि सचिन संन्यास-त्याग जैसा कार्इ कदम उठाते हैं तो विज्ञापन जगत और अन्य प्रायोजक उनसे किनारा कर जाएंगे ! नर्इ प्रतिभाओं को मौका देना तो बीसीसीआर्इ प्रबंधन का काम है जो कि स्वयं सचिन के फैंसले और बयानों पर ताली बजाने में लगी हुर्इ है। यदि एक प्रशंसक के रूप में ना देखकर उन्हें कि्रकेट की जरूरतों के आधार पर देखा जाये तो भी कहीं ना कहीं उन्हें अब आराम करना चाहिए। अभी तक के योगदान और सफलता के मानकों केा ध्यान में रखकर यदि संन्यास का प्रस्ताव भेजा जाये तो उनके साथ साथ पूरा देश भी समझेगा कि उनका त्याग कर्इ अन्य प्रतिभाओं के रूप में देश के सामने आयेगा।
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