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एक कश मुझे भी …

dhairya
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ज्योति से ज्योति बुझाते चलो
सिगरेट से सिगरेट जलाते चलो
ना मिले माचिस या लाइटर तुम्हें,
तो यही फामर्ुला अपनाते चलो।
धीरे – धीरे लगाओ जानदार कश
फिर देखो अजीब सी ये कशमकश।
एक दो बार में ही समझ जाओगे
फिर कभी तुम इसे ना छाड़ पाओगे।
पहले दोस्तों ने मौज में चखा दी थी
एक दो दिन इसने नींद ही उड़ा दी थी।
बीढ़ी से कैपिस्टन खूब जोश में चली
अब तो विल्स और ब्लैक पिलाते चलो।
सिगरेट से सिगरेट जलाते चलो।
चार रूपये जेब में ना हों तो धिक्कार है
जो पिलाए ना ये , साला मक्कार है।
पहले पीते थे बीढ़ी , चिलम साथ में
अब तो चाहिए पूरी बियर हाथ में।
कोर्इ माचिस ना दे तो छुला दो उसके।
पकड़ कर पूरी सिगरेट घुसा दो उसके।
पहले तो थोड़ा वो घबरायेगा
बाद में बेचार बार बार मंगवायेगा।
बस यही मुहिम हर जगह चलाते रहेा
सिगरेट से जिंदगियां जलाते रहो।
– मयंक दीक्षित

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