dhairya
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क्या हम उसी देश में रहे हैं जहां की सरकारें महापुरूषों की आखिरी निशानियां विदेशियों को बेचने पर आमादा हैं। मदर टेरेसा , महात्मा गांधी जैसी शख्सियतें जो आज भी समाज में पूज्यनीय दर्जा रखतीं हैं , इनके अवशेष निशानियों को रखने में भी इन्हें बोझ महसूस होता है। जहां आस्ट्रेलिया और बर्लिन जैसे प्रतिषिठत प्रांतों में इस तरह की नीलामियों पर पूरी तरह रोक है वहीं आधुनिकता की सीढ़ी चढ़ रहा भारत आज भी इसे अपनी शानोशौकत का हिस्सा मानता है। हमें तो चाहिए इस तरह की निशानियां राष्ट्रीय धरोहर के रूप में नए-नए संग्रहालय बनाकर उनमें सहेज कर रखीं जाएं। तभी हम कह पाएंगे कि जिन आत्माओं ने देश निर्माण में सार्थक सहयोग किया था वे आज भी हमारे संग्रहालयेां में जीवित हैं।
मयंक दीक्षित
सकेतनगर कानपुर
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