dhairya
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बाहरवीं करके निकला था वो
देखे थे उसने कुछ सपने
अंक गणित – विज्ञान छोड़कर
चला आकाश की उुचार्इ नापने
बनना था एक गायक उसको
कोर्इ ना समझा लायक उसको
माता पिता ने डांट डपटकर
कंटाप लगा और कान मरोड़कर
इंजीनियर बनने की शपथ दिलार्इ
जब उसने अपनी इच्छा जतार्इ
तो बापू ने फटकार लगार्इ
कहा जब मां से हाथ जोड़कर
गए तानसेन तुझे छोड़कर
पिता ने एसी ही गाथा सुनार्इ।
रोता रहा कर्इ रात वो अभागा
कोर्इ ना उसको सुनकर जागा
अगले दिन जब चाय लायी मां
जोर से जब आवाज लगायी मां
हुर्इ ना कोर्इ आहट – खटपट
दोड़े सब कमरे में सरपट
किए पड़ा था उल्टी करवट
झकझोरती रही मां उसे दिनभर
कहती रही उठ मेरे गायक
पर शायद नहीं था वो अब उठने लायक।
सपने हो गये सब चूर चूर
इसीलिए चला गया बहुत दूर दूर
काश बात वो मान ली होती
ना इंजीनियर शब्द ने उसकी जान ली होती।
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